◼️पहारे गांव का सरपंच पद आदिवासियों के लिए आरक्षित,
◼️मूलभूत सुविधाओ से वंचित लोग,विकास कार्य पर विराम
◼️जिला परिषद के स्कूल जर्जर, विद्यार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़
भिवंडी तालुका के पहारे गांव का सरपंच पद पिछले 25 वर्षों खाली पड़ा है।उक्त गांव का सरपंच पद आदिवासियों के लिए आरक्षित है।जबकि गांव में एक भी आदिवासी परिवार नही रहता है।सरपंच के अभाव में गांव का विकास कार्य पूरी तरह ठप्प पड़ा है।वही गांव के लोग मूलभूत सुविधाओ से पूरी तरह वंचित है। ग्रामीणों ने सरपंच पद पर का आरक्षण हाटने के साथ ही अविलंब सरपंच का चुनाव कराने की मांग प्रशासन से की है।
गौरतलब हो कि भिवंडी तालुका के पहारे गांव सरपंच पद को शासन व चुनाव यत्रंणा ने मिलकर 1995 में आदिवासियों के लिए आरक्षित किया था। गांव में एक भी आदिवासी परिवार नहीं होने के कारण सरपंच पद की कुर्सी पिछले 25 वर्षों से खाली पड़ी है।पहारे गांव पंचायत के कार्यभार ग्राम सेवक अधिकारी संभालते हुए आ रहे है।किन्तु ग्राम सेवक की दूसरे गांव में अतिरिक्त जिम्मेदारी होने के कारण वह 15 दिनों या महीने में सिर्फ एक बार ही गांव पंचायत में आ पाते है।
सरपंच के अभाव में गांव बदतर स्थिति में है।खराब सड़कों पर चलना कांटे पर चलना के बराबर है। गांव में 25 वर्ष पूर्व बनी पानी की टंकी खराब होने के कारण नागरिकों को पानी खरीदकर या वोरबेल का पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 10 वर्षों से जिला परिषद स्कूल की मरम्मत नहीं होने के कारण विद्यार्थी जीवन खतरे में डालकर पढ़ाई कर रहे है।जिसके कारण गांव के लोगो ने आरक्षित किया सरपंच पद को हटाने की मांग शासन से किया है।
गांव के पुलिस पाटिल भारत भोईर ने बताया कि गांव में सरपंच पद रिक्त है ग्राम पंचायत का पुरा कामकाज ग्राम सेवक देखते आ रहे है लेकिन उनके पास दो गांवो की जिम्मेदारी शासन ने सौंप है। जिसके कारण वह गांव पंचायत कार्यकाल में 15 दिन या महीने में एक बार ही आते है इस लिए गांव का विकास पूरी तरह से ठप्प पड़ा हुआ है।
पहारे गांव के पूर्व सरपंच पुंडलिक पाटिल ने बताया कि गांव में पानी टंकी का काम 25 वर्ष पहले किया गया था।किन्तु टंकी में आज तक पानी कनेक्शन नही जुड़ने के कारण लोगो को पानी खरीद कर पीना पड़ता है यहाँ तक कुछ लोग कुएं तथा बोरिंग का पानी पीते है।सरकार ने गांव में आदिवासी नहीं होने के बावजूद भी सरपंच पद पर आरक्षण लागू कर गांव के लोगो के साथ अन्याय किया है।सरकार इसे संज्ञान में लेकर ग्रामीणों के साथ न्याय करें।