मुंबई- कोरोना काल मेंबिजली के बढ़े बिलों को लेकर महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने आम आदमी को राहत देने का वादा किया था, लेकिन लगता है कि अब सरकार अपना वादा भूल गई है। क्योंकि बिजली के बिलों में राहत देने वाला 1,000 करोड़ रुपये का प्रस्ताव मंत्रिमंडल में लंबित पड़ा हुआ है। गौरतलब हो कि लॉकडाउन के दौरान तमाम दुकानें और कल-कारखाने बंद थे. फिर भी अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में बिजली के बिल बहुत ज्यादा आए। इसे लेकर लोगों में भारी नाराजगी देखी गई थी, जिसपर सरकार ने बिलों में कमी का भरोसा दिलाया था।बढ़े बिलों के खिलाफ अनेक राजनीतिक दलों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया था। मामला इतना गरमा गया था कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उप मुख्यमंत्री अजीत पवार को बिजली के इन बिलों में राहत देने का आश्वासन देना पड़ा।
बिजली कंपनियों का आम आदमी पर दबाव
काफी माथापच्ची के बाद ऊर्जा मंत्री नितिन राउत ने उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए मंत्रिमंडल के सामने एक हजार करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा था, लेकिन अभी तक उस प्रस्ताव पर मंत्रिमंडल में कोई चर्चा नहीं हुई। इससे बिजली ग्राहकों को राहत मिलने की संभावना खत्म होती नजर आ रही है। उल्टे बिजली कंपनियां आम आदमी पर दबाव बना रही हैं कि वे बिलों का तुरंत भुगतान करें।
सरकारी खजाने पर बढ़ा बोझ
इस बारे में ऊर्जा विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारे अधिकारियों ने बिजली के बिलों की जांच की है। जांच में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। ऐसे में आम आदमी को किस बात की राहत दी जाए ? जबकि आम लोगों का कहना है कि जब दुकानें, कारखाने आदि बंद थे, बिजली की खपत नहीं हुई तो इतने भारी भरकम बिल कैसे आ गए ? इधर सरकार ने किसानों के लिए 10,000 करोड़ रुपये की राहत दी है, इसलिए खजाने पर काफी बोझ बढ़ चुका है।