हिजाब को लेकर देश भर में चल रहे हंगामे के बीच कॉलेज से कोर्ट पहुंचा मामला गुरुवार को भी सुलझ नहीं पाया। कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High court) के चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस कृष्णा एम खाजी की पीठ में मामले की सुनवाई हुई। दोपहर ढाई बजे से लेकर शाम 5 बजे तक छात्राओं के वकील देवदत्त कामत और संजय हेगड़े ने एक के बाद एक तमाम दलीलें पेश कीं।
दोनों वकीलों ने कहा कि अदालत छात्रों का हित देखते हुए सुनवाई के दौरान कॉलेज खोलने का अंतरिम आदेश जारी करे। इस पर कोर्ट ने कहा कि हम स्कूल – कॉलेज खोलने का आदेश जारी कर सकते हैं, लेकिन इस दौरान धार्मिक परिधान पहनने की छूट किसी को भी नहीं होगी। मामले में अगली सुनवाई अब सोमवार को दोपहर 2:30 बजे की जाएगी.
अगली सुनवाई 14 फरवरी को
चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हम अमन-चैन चाहते हैं। कोर्ट ने छात्राओं के वकीलों की दलीलों को दरकिनार करते हुए अंतरिम आदेश दिया कि मामले पर फैसला आने तक कोई भी छात्र धार्मिक कपड़े पहनकर स्कूल-कॉलेज नहीं जा सकेंगे। हम सभी को धार्मिक कपड़े पहनने से रोक रहे हैं। मामले की अगली सुनवाई सोमवार 14 फरवरी 2022 को होगी.
कोर्ट ने कहा- जिद न करें
विपक्ष के वकील संजय हेगड़े ने इस मामले के संवैधानिक मुद्दों की बजाय वैधानिक आधारों को देखते हुए फैसला करने की मांग की, इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि यह संवैधानिक अधिकारों का मुद्दा है। कोर्ट ने कहा कि एकल बेंच पहले ही कह चुकी है कि मामले में संवैधानिक मुद्दे शामिल हैं, इसीलिए इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा गया है। हेगड़े ने कहा कि मैं राज्य से अनुरोध करता हूं कि पोशाक, भोजन और आस्था से अलग देखें तो ये हमारी बच्चियां हैं। यह धार्मिक प्रथा का मामला नहीं, बल्कि शिक्षा के अधिकार का मामला है। हालांकि, कोर्ट इन तर्कों से सहमत नहीं हुई और कहा कि धार्मिक चीजें पहनने की जिद नह करें।
धार्मिक आस्था नहीं, शिक्षा का मामला
वकील संजय हेगड़े ने कहा- यह केवल धार्मिक आस्था का मामला नहीं है, बल्कि इससे लड़कियों की शिक्षा का सवाल भी जुड़ा हुआ है। यूनिफॉर्म के नियम का उल्लंघन करने पर दंड का कोई प्रावधान नहीं है। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम में जो भी दंड की व्यवस्था की गई है, वह ज्यादातर प्रबंधन से जुड़े मामलों के लिए है।