चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने या फ्री वाली स्कीम का वादा (Free scheme promises) करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट (SC) में सुनवाई हुई.
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को नोटिस भेजा है. याचिका में सार्वजनिक धन का इस्तेमाल कर मुफ्त चीजें देने का वादा करने वाली पार्टियों के चुनाव चिन्ह जब्त करने और दलों को गैर-पंजीकृत करने के निर्देश देने की मांग की गई थी.
बार एंड बेंच के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी के नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इसे लेकर केंद्र सरकार से कानून बनाने की मांग भी की है. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली ने याचिका पर सुनवाई की. पीठ ने कहा कि याचिका में गंभीर मुद्दा उठाया गया है. हालांकि, बेंच ने इस ओर भी इशारा किया कि याचिकाकर्ता की तरफ से चुनिंदा पार्टियों के नामों का ही जिक्र किया गया है.
सीजेआई ने कहा, ‘यह एक गंभीर मुद्दा है और मुफ्त वितरण का बजट नियमित बजट से अलग होता है. भले ही यह भ्रष्ट काम नहीं है, लेकिन यह मैदान में असमानता तैयार करता है.’ इसके अलावा सीजेआई ने कहा, ‘आपने हलफनामे में केवल दो नाम शामिल किए हैं.’ याचिका में पंजाब विधानसभा चुनाव में हुई घोषणाओं का हवाला दिया गया है. इनमें आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस का नाम शामिल है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि मुफ्त की घोषणाएं चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई हैं. उपाध्याय ने यह घोषणा करने की भी प्रार्थना की है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक धन के जरिए मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त की चीजों का वादा या वितरण करना संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266(3) और 282 का उल्लंघन है.
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि कुछ राज्य हैं, जिनपर प्रति व्यक्ति 3 लाख रुपये के कर्ज का बोझ है और इसके बाद भी मुफ्त की घोषणाएं की जा रही हैं. बेंच की तरफ से मामले में नोटिस जारी कर दिया गया है. वहीं, अगली सुनवाई 4 हफ्तों के बाद होगी.